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भटकती आत्मा भाग - 7


                  भटकती आत्मा भाग – 7 




          ×    -    ×   -    ×   

  "तुम कहां चले गए थे, मनकू"? 
    "मैं .... मैं ...तो हल शामू को थमा कर यह देखने गया था कि कौन गिर गया है, पर्वत की चोटी पर"|
  " तुम भी वहाँ जाकर उसके साथ गिर पड़े थे"?
    मनकू -  " नहीं बाबा मैं उसके पांव के  मोच को दूर कर रहा था l उसी में देर हो गई"|
  " बेटा ! तुम मुझसे ही झूठ बोलने लगे ! दु:ख होता है, तुम्हारी बात से"|
  मनकू-   "नहीं बाबा मैं झूठ क्यों बोलूंगा"?
  "देखो बेटे किसी से दिल लगाना अच्छा नहीं होता, जीवन बर्बाद हो जाता है -- बर्बाद ! समझे"|
  मनकू - " ऐसी कोई बात नहीं है बाबा"|
  " फिर झूठ बोलते हो | सरदार उसी रास्ते से नेतरहाट जा रहा था,किसी काम से | उसने अपनी आंखों से देखा है"|
मनकू  -  "बा....बा ठीक ही कह रहे थे सरदार तुमसे l मैं.....मैगनोलिया के पाँव ठीक कर रहा था,और कोई बात न थी"|
  "कौन मैगनोलिया"?
    मनकू  -   " वही कलेक्टर साहब की बेटी"|
"अच्छा !  यह तो ठीक नहीं हुआ बेटा ! अंग्रेजों से दोस्ती या दुश्मनी दोनों घातक होता है ।
    मनकू -   "वह दिल से बहुत साफ है, बाबा"|
   " नहीं, तुम नहीं समझोगे | यह प्रेम कभी सफल नहीं होगा | गोरा कलेक्टर यह कभी नहीं चाहेगा | वह अपनी बेटी की शादी किसी काले हिंदुस्तानी से कभी नहीं करेगा"|
  मनकू -  "बाबा तुम तो नाहक डरने लगे, कोई प्यार व्यार नहीं है"|
" तुम अब उससे फिर कभी नहीं मिलोगे -  समझे"!
   मनकू -  "क्यों मैं क्यों उससे मिलूंगा भला"?
    " अगर तुम गांव की किसी लड़की को चाहते होते,और मुझे मालूम होता तब तुरन्त उसके साथ तुम्हारी शादी कर देता | परन्तु यह शादी,नामुमकिन है"|
   मनकू गहरी सोच में पड़ गया | वेदना से उसका दिल फट जाना चाहता था l किसी गहरी झील से बाबा की आवाज कर्ण  गोचर हुई -  "मनकू अच्छा होगा उसको दिल से निकाल दो l अभी पहली मुलाकात है,अभी आसान होगा l अगर दिल में प्रेम अंकुरित हो रहा हो तो फिर नोच डालो उसे"|
मनकू किंकर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा रह गया | उसके बाबा घर से बाहर निकल चुके थे l उनको क्या पता था कि मनकू कब का अपना दिल उसे दे चुका था l

        ×     -      ×     -       ×

दोपहर का समय l पर्वतीय झील में बंसी डाले मनकू तपस्वी सा बैठा था l वहीं से  दूर पर मैगनोलिया दृष्टिगोचर हुई उसे l  उसके कंधे पर फोटो कैमरा लटक रहा था,और आंखों पर धूप का चश्मा चढ़ाई हुई थी l मनकू ने देखा, आज वह पैदल ही जंगल की सैर कर रही थी, लेकिन वह अकेली नहीं थी | उसके साथ कोई और भी था | कौन हो सकता है - मनकू ने सोचा | ईर्ष्या की रेखा खिंच गई उसके अंत:स्थल में | उनके कुछ और निकट आने पर स्पष्ट देखा - दूसरा व्यक्ति तो उसके पिता हैं - कलेक्टर साहब |
अभी तक मैगनोलिया मनकू को नहीं देख पाई थी | वह कैमरे में एक दृश्य उतार रही थी | कितनी प्यारी लग रही है | मनकू ने सोचा और अपने भाग्य पर  इठलाने लगा l
कुछ देर के बाद मनकू ने देखा कलेक्टर साहब इसी ओर चले आ रहे हैं l मैगनोलिया तितली पकड़ रही थी l उसने भी तितली पकड़ा और अपने पिता के साथ चल पड़ी l मनकू घबड़ा गया क्योंकि कलेक्टर साहब उसके बहुत समीप आ चुके थे l मनकू ने अपनी दृष्टि झील के शांत पानी में गड़ा दिया जानबूझकर l उसके कानों में मैग्नोलिया की सुरीली आवाज गूंज गई -  "पापा यही वह व्यक्ति है जिसने हमको बाघ से बचाया था"|
  ओह,आईसी ! ओ मैन कम हियर l हम तुमको देखना मांगता है" l 
   अब मनकू को दृष्टि चुराते न बन पड़ा l उसने कहा -  " गुड नाइट"|
  मैगनोलिया और कलेक्टर साहब की हंसी सूखे बांस की ठन ठनाहट की तरह गूंज उठी l मनकू हतप्रभ सा हो उठा l मैगनोलिया ने कहा -  "गुड नाइट"-   रात में कहा जाता हय,समझा फ्रेंड"|
अब मनकू अपनी अज्ञानता पर चिढ़ गया, लेकिन उसके मुंह से आवाज न निकली | कलेक्टर साहब ने कहा -  
  ब्रेवमैन हम तुमसे बहुत खुश है l नौकरी का जरूरत हो तो हमको कहना, हम अच्छा नौकरी देगा तुमको"|
  मनकू  -  " जी अच्छा जब जरूरत होगी तब जरूर कहूंगा"|
  कहता हुआ मनकू ने चोर दृष्टि से मैगनोलिया की ओर निहारा l
  " ओ फ्रेंड हम टुम्हारा फोटो लेना मांगटा हय"| 
  कहती हुई  मैगनोलिया ने अपने पिता की ओर दृष्टि की l कलेक्टर साहब ने कहा -  "जरूर फोटो उतारो मैग्नोलिया, बहुट अच्छा सीनरी हय"| मैग्नोलिया ने कैमरे को मनकू की ओर किया और कुछ ही पलों में चित्र उतार लिया l
कलेक्टर साहब दूसरी ओर जाने के लिए उन्मुख हुए l उनकी निगाह एक जंगली जानवर पर पड़ गई थी l कुछ दूर जाने पर एक हिरण को देखकर बहुत खुश हुए कलेक्टर साहब,परन्तु अपने साथ मैगनोलिया को न देख कर पीछे मुड़कर उन्होंने देखा; मैगनोलिया मछली पकड़ने का उपक्रम कर रही थी |
  इधर बंसी को हाथ में पकड़ कर मैगनोलिया ने मनकू को धीरे से कहा - 
  " डियर हम तुमको रात में वहीं मिलेगा, जहां पर सनसेट देखा था"|
फिर उसने एक चुंबन ले लिया मनकू का, परंतु उसी समय अपने पिता को अपनी ओर निहारते देखकर वह बँसी पकड़ कर  पानी में डाल दी थी l
  मनकू ने कहा -  "ठीक है मैं रात में अवश्य वहां पहुंच जाऊंगा,अभी तुम चली जाओ नहीं तो कलेक्टर साहब कुछ और समझ लेंगे"|
  मैगनोलिया के मुख पर मुस्कुराहट की रेखा खिंच गई l वह "गुड बाय" कहती हुई उस ओर बढ़ गई जिस रास्ते पर  कलेक्टर साहब खड़े होकर उसकी प्रतीक्षा करने लगे थे l समीप जाने पर कलेक्टर साहब ने कहा -  
  "तुम क्या करने गई थी वहां"|
"मछली पकड़ना सीख रहा था पापा"|
" अच्छा चलो अब हम घर चलते हैं"|
  कहते हुए कलेक्टर साहब आगे बढ़ गए | मैगनोलिया आज्ञाकारी बालिका सी खिंचती चली गई,उनके साथ | कभी कभी पीछे मुड़कर वह मनकू को देख लेती थी |
    
                                       क्रमशः

             निर्मला कर्ण

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2 Comments

Mohammed urooj khan

18-Oct-2023 10:47 AM

👌👌👌

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Punam verma

01-Aug-2023 02:19 PM

Very nice

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